Thursday, September 27, 2007

पहले पन्ने के लिए अखबारों की प्राथमिकता

पहले पन्ने के लिए अखबारों की प्राथमिकता

भूमिका

प्रक्रिया

खबरों का विषय

कहाँ से आयी है खबरें

प्रभाव क्षेत्र (राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय/प्रादेशिक/स्थानीय)

प्रस्तुति

स्रोत

चित्रों का प्रयोग

प्राथमिकताओं में तुलना

पहले पन्ने के लिए अखबारों की प्राथमिकता: प्रमुख निष्कर्ष

भूमिका
अखबार लंबे समय से प्रामाणिक सूचना का स्रोत रहे हैं. आज संचार के नए नए माध्यमों के आ जाने के बाद भी हालत यह है कि बहुत से लोग टीवी पर खबर देखने के बाद अगले दिन के अखबार से उसे ' कन्फर्म' करते हैं.
पहले पन्ने को अखबार का आईना माना जाता है. इस पर छपी खबरों का आम जनता पर व्यापक प्रभाव पडता है. इन विषयो के प्रति लोगों में जागरुकता भी बढती है. कई बार पहले पन्ने की खबरें उस दिन की अन्य घटनाओं की महत्ता को मापने का पैमाना भी बनती है. एक वरिष्ठ पत्रकार के शब्दों में "अखबार के पहले पन्ने पर छपी खबरें उस दिन का इतिहास तय करती हैं."
इसलिए अखबारों की जिम्मेदारी बनाती है की वह पहले पन्ने पर ऐसी खबरों को छापें जिनका आमजन से व्यापक सरोकार हो, जिनके बारे में जानना देश व समाज के विकास के लिए जरुरी हो और जो लंबे समय तक प्रभाव रखने वाले हों.
अखबार किन मुद्दों को प्राथमिकता देते हैं, यह पहले पन्ने पर छपी खबरों से स्पष्ट हो जाता है. इसलिए पहले पन्ने पर छपी खबरों के प्रति उनकी प्राथमिकता के बारे में जानना महत्वपूर्ण है. इस समय देश में हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं के अखबार बड़ी संख्या में पढे जाते हैं. दोनों ही भाषाओं के अखबारों का अपना ख़ास पाठक वर्ग है. इसलिए दोनों की प्राथमिकताओं का अलग- अलग विश्लेषण भी जरुरी है.
दोनों भाषाओ के अखबारों की प्राथमिकताओं को जानने के लिए सीएमएस मीडिया लैब द्वारा अगस्त 2007 में प्रकाशित प्रमुख हिन्दी और अंग्रेजी दैनिकों के पहले पन्ने का अध्ययन किया गया.

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प्रक्रिया
1-31 अगस्त के बीच प्रकाशित हिन्दी दैनिकों हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, नवभारत टाइम्स और राष्ट्रीय सहारा व अंग्रेजी दैनिकों द हिन्दू, द इंडियन एक्स्प्रेस, द टाइम्स ऑफ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स के पहले पन्ने पर का अध्ययन किया गया.

इनमें छपी खबरों का निम्नलिखित आधारों पर विश्लेषण किया गया.

खबरों का विषय

कहां से आयी हैं

प्रभाव क्षेत्र (अंतर्राष्ट्रीय/राष्ट्रीय/प्रादेशिक/स्थानीय),

प्रारूप,

स्रोत,

चित्रों का प्रयोग और

हिन्दी व अंग्रेजी अखबारों की प्राथमिकताओं में तुलना.

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खबरों का विषय
दोनों ही भाषाओं के अखबारों में राजनीति की खबरों को सबसे ज्यादा प्राथमिकता दी गयी है. इसके बाद अपराध को प्राथमिकता दी गयी है. वहीं कला- संस्कृति, पर्यावरण, वन्य जीवन, फैशन, जीवन-शैली, मौसम, कृषि और मीडिया जैसे महत्वपूर्ण विषयों को दोनों ही भाषाओं के अखबारों ने नजरअंदाज किया. अखबारों के पहले पन्ने पर इन विषयों से न के बराबर खबरें छपी.
राजनीति व अपराध पर की खबरों की संख्या आर्थिक मामलों के खबरों के दोगुना से ज्यादा है. वहीं विकास संबंधी अन्य विषयों से कई गुना ज्यादा संख्या में राजनीति व अपराध की खबरें छपी.

अलग अलग विषयों की खबरों को मिली प्राथमिकता का विश्लेषण आगे किया जा रहा है.

राजनीति :

दोनों भाषाओं के अखबारों में पहले पन्ने पर राजनीति की खबरें सबसे ज्यादा छपी. हालांकि अंग्रेजी अखबारों ने इस विषय को ज्यादा (हिन्दी के मुकाबले 3% ज्यादा) कवरेज दी. उनमें पहले पन्ने पर छपी 23% खबरें इस विषय से थीं. हिन्दी अखबारों के पहले पन्ने पर इस विषय की 20% खबरें छपीं.

अपराध :

दोनों ही भाषा के पत्रों की दूसरी प्राथमिकता अपराध विषय है. दोनों ने अपराध की खबरों को बराबर प्राथमिकता दी. हिन्दी अखबारों के पहले पन्ने की 13% खबरें इस विषय पर हैं. वहीं अंग्रेजी अखबारों मे इस विषय के अखबारों की संख्या 12% है.

अंतर्राष्ट्रीय :
अंतर्राष्ट्रीय मामलों की खबरों को भी अखबारों पहले पन्ने पर प्रमुखता दी. इस विषय पर हिन्दी अखबारों में अंग्रेजी के मुकाबले ज्यादा खबरें छपी. हिन्दी अखबारों मे पहले पन्ने पर 12% खबरें इस विषय से हैं. वहीं अंग्रेजी अखबारों के पहले पन्ने पर 9% खबरें इस विषय से हैं.

न्याय-व्यवस्था :

दोनों भाषाओं के पत्रों ने न्याय- व्यवस्था को बराबर प्राथमिकता दी. दोनों भाषाओं के अखबारों मे पहले पन्ने पर इस विषय के खबरों की संख्या 9-9% है.

आर्थिक मामले :

हिन्दी अखबारों में व्यापार/ आर्थिक मामलों की खबरें अंग्रेजी से ज्यादा छपी. हिन्दी अखबारों के पहले पन्ने पर औसतन 7% खबरें आर्थिक मामलों से थी वहीं अंग्रेजी अखबारों में पहले पन्ने पर 5% खबरें इस विषय से थीं.

मानवीय रुचि:
मानवीय रुचि की खबरों को दोनों भाषाओं के अखबारों ने बराबर प्राथमिकता दी. दोनों के पहले पन्ने पर इस विषय से 6% खबरें थी.

खेल :
खेल की खबरों को दोनों अखबारों पहले पन्ने पर लगभग बराबर प्रमुखता दी. हालांकि हिन्दी अखबारों में इनकी संख्या अंग्रेजी के मुकाबले थोडी ज्यादा है. हिन्दी अखबारों में पहले पन्ने पर खेल की खबरों की संख्या कुल खबरों का 7% थी. वहीं अंग्रेजी अखबारों के पहले पन्ने पर कुल समाचारों का 6% खेल समाचार थे.
सुरक्षा :
राष्ट्रीय सुरक्षा की खबरों को हिन्दी से ज्यादा प्राथमिकता अंग्रेजी अखबारों ने दी. इनके पहले पन्ने पर 5% खबरें राष्ट्रीय सुरक्षा विषय से थी. हिन्दी अखबारों के पहले पन्ने पर इन खबरों की संख्या कुल खबरों का 3% थी.
फ़िल्म :
फिल्म, मनोरंजन व सेलिब्रेटी से जुडी खबरों को हिन्दी और अंग्रेजी अखबारों ने बराबर प्राथमिकता दी. दोनों भाषाओं के अखबारों के पहले पन्ने पर इन विषयों से 4-4% खबरें छपी.

जननिति/शासन :

जननीतियों और शासन की खबरों को दोनों भाषाओं के अखबारों ने बराबर प्राथमिकता दी. दोनों के पहले पन्ने पर कुल खबरों का 4-4% इस विषय थीं.

दुर्घटना/प्राकृतिक आपदा :

दुर्घटनाओं व प्राकृतिक आपदाओं की खबरों को भी दोनों भाषा के पत्रों ने समान प्रमुखता दी. दोनों ही भाषाओं के पत्रों के पहले पन्नों पर इस विषय की लगभग 3% खबरें छपी.

कानून-व्यवस्था :
हिन्दी अखबारों ने पहले पन्ने पर कानून व्यवस्था की खबरों को ज्यादा संख्या में (अंग्रेजी के मुकाबले) प्रकाशित किया. हिन्दी पत्रों के पहले पन्ने पर कुल खबरों की 3% संख्या इस विषय से थी. वहीं अंग्रेजी अखबारों में इस पन्ने पर 2% खबरें इस विषय से थी.

भ्रष्टाचार:
भ्रष्टाचार की खबरों की कवरेज में दोनों भाषाओं के अखबारों में बडा अंतर है. हिन्दी अखबारों ने अंग्रेजी के दोगुने से ज्यादा संख्या में भ्रष्टाचार की खबरों को पहले पन्ने पर छापा. हिन्दी अखबारों के पहले पन्ने पर इस विषय के खबरों की संख्या कुल खबरों का लगभग 5% थी. वहीं अंग्रेजी अखबारों के पहले पन्ने पर मात्र 2% खबरें इस विषय से थीं.

शिक्षा :

शिक्षा की खबरों को दोनों भाषाओं के अखबारों ने बराबर महत्व दिया. दोनों के पहले पन्ने पर छपी 2% खबरें शिक्षा से थीं.

नागरिक मामले:
नागरिक मामलों से जुडी खबरों को हिन्दी अखबारों ने अपेक्षाकृत ज्यादा प्राथमिकता दी. इनके पहले पन्ने पर 4% खबरें नागरिक मामलों की थी. वहीं अंग्रेजी अखबारों के पहले पन्ने पर इस विषय की 3% खबरें छपी.

स्वास्थ्य :
स्वास्थ्य की खबरों को दोनों भाषाओं के अखबारों ने बहुत कम प्राथमिकता दी. दोनों के पहले पन्ने पर कुल खबरों का 1% इस विषय से थीं.

विज्ञान और प्रौद्योगिकी :
विज्ञान और प्रौद्योगिकी की खबरों को हिन्दी अखबारों ने पहले पन्ने पर अंग्रेजी के मुकाबले अधिक प्राथमिकता दी. हालांकि इनकी संख्या हिन्दी अखबारों में छपी अन्य खबरों की तुलना में बहुत कम है. हिन्दी अखबारों के पहले पन्ने पर कुल खबरों की महज 1% संख्या इस विषय से थी. वहीं अंग्रेजी अखबारों में इस पन्ने पर विज्ञान व प्रौद्योगिकी से न के बराबर खबरें छपीं.

अन्य विषय :
दोनों भाषाओं के अखबारों ने अन्य विषयों की खबरों को बराबर प्राथमिकता दी. दोनों के पहले पन्ने पर 2-2% खबरें अन्य विषयों की थी.

*** धार्मिक विषय की खबरें सिर्फ हिन्दी अखबारों के पहले पन्ने पर छपी. इनकी संख्या इस पन्ने पर छपी कुल खबरों की संख्या का 1% थी. वहीं मौसम की खबर सिर्फ अंग्रेजी अखबारों के पहले पन्ने पर छपी. इनकी भी संख्या अंग्रेजी पत्रों के पहले पन्ने पर छपी खबरों का 1% थी.
राजनीति व भ्रष्टाचार को छोडकर शेष विषयों के प्रति दोनों अखबारों की प्राथमिकताओं में खास अंतर नहीं है. राजनीति की खबरों को अंग्रेजी अखबारों में प्राथमिकता मिली वहीं भ्रष्टाचार की खबरों को हिन्दी अखबारों में ज्यादा प्राथमिकता दी गयी.




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कहाँ से आयी है खबरें

दोनों ही भाषाओं के अखबारों में पहले पन्ने पर अधिकतर दिल्ली से आयी खबरें थी. ग्रामीण क्षेत्रों, चेन्नै और कोलकाता से आयी खबरों को न के बराबर जगह दी गयी हैं. इस पन्ने पर दिल्ली आयी खबरों की संख्या लगभग 61.5% है वहीं ग्रामीण क्षेत्रों, चेन्नै और कोलकाता तीनों वर्गों की खबरों की कुल संख्या लगभग 1% है.

अलग अलग जगहों से आयी खबरों को मिली प्राथमिकता का विश्लेषण आगे किया जा रहा है.

दिल्ली :

दिल्ली से आयी खबरें लगभग सभी अखबारों के पहले पन्ने पर प्रमुखता से छपी. यहां से आयी खबरों को हिन्दी अखबारों ने अंग्रेजी के मुकाबले ज्यादा तरजीह दी. हिन्दी अखबारों के पहले पन्ने पर 66 फीसदी खबरें दिल्ली से आयी जबकि अंग्रेजी अखबारों मे इस पन्ने पर दिल्ली से आयी खबरें (57%) थी.

अंतर्राष्ट्रीय :

दूसरे देशों से आयी खबरों को अखबारों दोनों भाषाओं के अखबारों ने लगभग बराबर प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया. अंग्रेजी अखबारों मे पहले पन्ने पर विदेश से आयी खबरों की संख्या 11% थी. वहीं हिन्दी अखबारों में इन खबरों की संख्या 10% थी.

अन्य शहर (राजधानियों को छोडकर) :

अन्य शहरों से आयी खबरें भी लगभग सभी अखबारों के पहले पन्ने पर प्रमुखता से छपी. इन शहरों से आयी खबरों को हिन्दी अखबारों ने अपेक्षाकृत अधिक महत्व दिया. इनके पहले पन्ने पर अन्य शहरों से आयी 12% खबरें छपी जबकि अंग्रेजी अखबारों में पहले पन्ने पर इन शहरों से आयी 10% खबरें छपी.

राजधानी (महानगरों को छोडकर):

राज्यों की राजधानियों को अंग्रेजी अखबार ज्यादा प्राथमिकता देते हैं. अंग्रेजी अखबारों ने पहले पन्ने पर राज्यों की राजधानियों से आयी खबरों को हिन्दी अखबारों के दुगुने से भी ज्यादा संख्या में प्रकाशित किया. अंग्रेजी अखबारों के पहले पन्ने पर राजधानियो से आयी 12% खबरें थी वहीं हिन्दी अखबारों में पहले पन्ने पर इनकी संख्या महज 5% रही.

ग्रामीण क्षेत्र :

ग्रामीण इलाकों के प्रति दोनों भाषाओं के अखबार उदासीन हैं. लगभग सभी अखबारों के पहले पन्ने पर ग्रामीण क्षेत्रों से आयी खबरों की संख्या नगण्य है.

चेन्नै /कोलकाता :

महानगर होने के बावजूद चेन्नै और कोलकाता से आयी खबरों को अखबारों के पहले पन्ने पर न के बराबर जगह मिली है. हिन्दी अखबारों के पहले पन्ने पर इन दोनों जगहों से आयी खबरें न के बराबर छपी. अंग्रेजी अखबारों के पहले पन्ने पर कोलकाता से आयी 1% खबरें छपी.

मुम्बई :

अंग्रेजी अखबारों ने मुंबई से आयी खबरों को हिन्दी अखबारों के मुकाबले अधिक प्राथमिकता दी. इनके पहले पन्ने पर मुंबई से आयी खबरों की संख्या कुल खबरों का 10% थी. वहीं हिन्दी अखबारों में पहले पन्ने पर मुंबई से आयी खबरों की संख्या कुल खबरों का 8% थी.

इस तरह स्प्ष्ट हो जाता है कि सभी अखबारों की पहली प्राथमिकता दिल्ली है और सुदूर के इलाकों में इनकी दिलचस्पी कम है.



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प्रभाव क्षेत्र (राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय/प्रादेशिक/स्थानीय)

राष्ट्रीय :

राष्ट्रीय प्रभाव की खबरों को अखबारों ने पहले पन्ने की लिए सबसे ज्यादा प्राथमिकता दी है. पहले पन्ने पर छपी दस में से चार खबरें राष्ट्रीय प्रभाव की रहती हैं. दोनों भाषाओं के अखबारों को अलग अलग देखें तो राष्ट्रीय प्रभाव वाली खबरों को दी गयी प्राथमिकता में ज्यादा अंतर नहीं है.
हिन्दी अखबारों के प्रथम पृष्ठ के 41% समाचार इस विषय से हैं, वहीं अंग्रेजी अखबारों के पहले पन्ने पर भी इस विषय की खबरों की संख्या 38% है.

प्रादेशिक :
इसके बाद प्रादेशिक स्तर पर प्रभाव रखने वाले खबरों को अंग्रेजी अखबारों ने हिन्दी के मुकाबले ज्यादा प्रमुखता दी. इनके पहले पन्ने पर 36% खबरें प्रादेशिक प्रभाव वाली थी. वहीं हिन्दी अखबारों में पहले पन्ने पर इन खबरों की संख्या 30% थी.

अंतर्राष्ट्रीय :
दोनों भाषा के अखबारों में अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव वाले समाचारों को पहले पन्ने पर स्थान दिया गया है. हालांकि इनकी संख्या राष्ट्रीय और प्रादेशिक प्रभाव वाली खबरों की तुलना में बहुत कम है.

अंग्रेजी अखबारों ने अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव वाले समाचारों को हिन्दी अखबारों के मुकाबले ज्यादा प्राथमिकता दी. अंग्रेजी अखबारों के पहले पन्ने पर इनकी संख्या कुल खबरों का 18% थी जबकि हिन्दी अखबारों मे कुल खबरों का 15% अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव वाली खबरें थी.

स्थानीय :

पहले पन्ने पर स्थानीय महत्त्व के समाचारों को सबसे कम प्रमुखता मिली है. हिन्दी अखबारों ने अंग्रेजी के मुकाबले लगभग दुगुनी संख्या में स्थानीय महत्व के समाचारों को पहले पन्ने पर जगह दी.

हिन्दी अखबारों में पहले पन्ने पर स्थानीय महत्व की 15% खबरें छपी. वहीं अंग्रेजी अखबारों में पहले पन्ने पर 8% खबरें स्थानीय प्रभाव की थी.

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प्रस्तुति
प्रस्तुति को लेकर दोनों भाषाओं के पत्रों में खास अंतर नहीं है. दोनों भाषाओं के अखबारों में पहले पन्ने पर सामान्य समाचारों की प्रधानता है. विश्लेषण कम संख्या मे हैं, फीचर और अन्य रूप इससे भी कम हैं.

दोनों ही भाषाओं के अखबारों में पहले पन्ने पर छपी दस में नौ खबरें सामान्य समाचार के रूप में होती है. हिन्दी अखबारों के पहले पन्ने सामान्य समाचारों की संख्या पर 93% है. अंग्रेजी अखबारों के पहले पन्ने पर कुल खबरों का 91% सामान्य समाचार के रूप में छपे.

अंग्रेजी अखबारों में विश्लेषणों की संख्या हिन्दी के मुकाबले 1.5 गुना है. अंग्रेजी अखबारों के पहले पन्ने पर कुल खबरों का 6% विश्लेषण के रूप में छपे. जबकि हिन्दी अखबारों में इनकी संख्या 4% है.
फीचरों और अन्य प्रस्तुतियों की संख्या दोनों भाषाओं के अखबारों में बराबर है. दोनो भाषाओं के पत्रों में फीचरों की संख्या 1-1% और अन्य प्रस्तुतियों की संख्या 2-2% है.

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स्रोत

खबरों के लिए प्रयोग किये जा रहे स्रोत यह स्पष्ट करते हैं कि उन खबरों के प्रति अखबार कितने गंभीर हैं. स्रोत के विश्लेषण से हम पाते हैं महत्वपूर्ण मुद्दों को कवर करने के लिए अखबार अपने संवाददाताओं को रखते हैं. अधिकतर अखबारों ने पहले पन्ने पर अपने पत्रकारों की खबरों को प्राथमिकता दी.
इस पन्ने की खबरों के लिए कम ही अखबार समाचार समितियों पर निर्भर हैं. जहां अखबारों के संवाददाता नहीं हैं वहां की खबरें संवाद समितियों से ली गयी. कई बार संवाददाताओं और समाचार समितियों का प्रयोग संयुक्त रूप से किया गया.
अंग्रेजी अखबारों के पहले पन्ने पर उनके संवाददातओं द्वारा भेजी गयी खबरों की संख्या कुल खबरों का 76% थी वहीं हिन्दी अखबारों के पहले पन्ने के 70% ऐसी खबरें थी.
समाचार समितियों को हिन्दी अखबारों ने ज्यादा प्राथमिकता दी. हिन्दी अखबारों ने पहले पन्ने पर अंग्रेजी के मुकाबले चार गुना संख्या में समाचार समितियों की खबरों को प्रकाशित किया. हिन्दी अखबारों में पहले पन्ने पर समितियों की खबरों की संख्या कुल खबरों का 24% है. अंग्रेजी अखबारों में पहले पन्ने पर मात्र 6% खबरें समाचार समितियों की हैं.
अंग्रेजी अखबारों के पहले पन्ने पर 14% खबरें ऐसी थी जिनके लिए संवाददाता और समितियों दोनों स्रोतों का प्रयोग किया गया. हिन्दी के तीन अखबारों ने सिर्फ एक एक बार ऐसा किया है.
कुछ मामलों में अखबारों ने खबरों के स्रोत का उल्लेख नहीं किया. दोनों भाषाओं के अखबारों में पहले पन्ने पर 4% खबरें ऐसी हैं जिनके स्रोत का जिक्र नहीं किया गया.

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चित्रों का प्रयोग




कहा गया है कि "एक चित्र हजार शब्दों के बराबर होता है". अखबारों ने इस कथन को पुष्ट किया है. दोनों भाषाओ के अखबारों में पहले पन्ने के लगभग आधे समाचारों के साथ चित्रों का प्रयोग किया गया है. कई बार तो सिर्फ़ चित्र ही छापे गए हैं.
चित्रों के मामले में दोनों भाषाओं के अखबारों की प्राथमिकताएं भिन्न हैं. हिन्दी अखबारों ने अंग्रेजी के मुकाबले 15% ज्यादा खबरों के साथ चित्र छापा. हिन्दी अखबारों में पहले पन्ने पर 62% खबरों के साथ चित्र छपे जबकि अंग्रेजी अखबारों के पहले पन्ने पर 47% के खबरों साथ चित्र प्रकाशित किये गये.

हिन्दी अखबारों में ऐसी खबरों की संख्या कम (अंग्रेजी से 11% कम) है जिनके साथ चित्र नहीं छपे. अंग्रेजी में अखबारों के पहले पन्ने पर 43% ख़बरें बिना चित्र के छपी. वहीं हिन्दी अखबारों मे पहले पन्ने पर 32% खबरों के साथ कोई चित्र प्रकाशित नहीं हुआ.

खबर के रूप में सिर्फ चित्र को अंग्रेजी अखबारों ने अधिक प्रमुखता दी है. अंग्रेजी अखबारों के पहले पन्ने पर 10% समाचार ऐसे थे जिनमें सिर्फ चित्र था. हिन्दी अखबारों के पहले पन्ने पर ऐसे समाचारों की संख्या 6% थी.
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प्राथमिकताओं में तुलना
हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओ के अखबारों की प्राथामिकताओ में कोई बड़ा अन्तर नही है. खबरों के स्थान, प्रस्तुति और चित्र आदि के मामलो में तो स्थिति लगभग एक जैसी है. विषयो और स्रोत के संदर्भ में दोनों भाषाओ के अखबारों में अन्तर है.
हिन्दी अखबार खबरों के लिए समाचार समितियों पर अंग्रेजी अखबारों के मुकाबले ज्यादा निर्भर हैं. लगभग सभी पत्रों के पहले पन्ने पर ज्यादातर (लगभग दो तिहाई) खबरें पत्रकारों की है.

विभिन्न विषयो की खबरों की संख्या तो लगभग बराबर है. अंतर्राष्ट्रीय मामले, राष्ट्रीय राजनीति और सुरक्षा जैसे विषयों की संख्या अंग्रेजी अखबारों में ज्यादा है. शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, व्यापार, अर्थ-व्यवस्था व नागरिक मामलो जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे सभी अखबारों में हाशिए पर हैं. राजनीति व अपराध की खबरें ही पहले पन्ने पर छायी हुई हैं.

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पहले पन्ने के लिए अखबारों की प्राथमिकता: प्रमुख निष्कर्ष
चार प्रमुख हिन्दी दैनिकों हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, राष्ट्रीय सहारा व नवभारत टाइम्स और चार प्रमुख अंग्रेजी दैनिकों हिन्दुस्तान टाइम्स, द टाइम्स ऑफ इंडिया, द हिन्दू और द इंडियन एक्सप्रेस के पहले पन्ने के समाचारों के अध्ययन से निम्नलिखित निष्कर्ष प्राप्त हुए.

राजनीति की खबरें अखबारों की पहली प्राथमिकता है. इस पन्ने पर औसतन 16.5% खबरें राजनीति से रहती हैं. अंग्रेजी अखबार राजनीति की खबरों को ज्यादा (हिन्दी के मुकाबले 3% ज्यादा) प्राथमिकता देते हैं.

दोनों भाषाओं के अखबारों में राजनीति के बाद अपराध की खबरों को प्रमुखता दी जाती है. पहले पन्ने पर औसतन 12.5% समाचार इस विषय से हैं.

शिक्षा, स्वास्थ्य, अर्थ-व्यवस्था, कृषि-व्यापर व बुनियादी सुविधाएं जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को पहले पन्ने पर बहुत कम जगह दी जा रही है. पहले पन्ने पर छपी इन विषयों की खबरों को मिला दें तो वह कुल खबरों की संख्या का दस फीसदी हैं.

राष्ट्रीय महत्व की खबरें पहले पन्ने पर प्रमुखता से छपती हैं. इस पन्ने पर 10 में से 4 खबरें राष्ट्रीय महत्व की रहती हैं. दोनों भाषाओं के अखबारों ने इन खबरों को लगभग बराबर प्राथमिकता दी.

पहले पन्ने पर दिल्ली से आयी खबरें सबसे ज्यादा संख्या में रहती हैं. दस में छः खबरें दिल्ली से होती हैं. हिन्दी अखबारों के पहले पन्ने पर 41% खबरें राष्ट्रीय प्रभाव वाली थी जबकि अंग्रेजी अखबारों में पहले पन्ने पर ऐसी खबरों की संख्या 38% है.

ग्रामीण इलाकों की खबरों को पहले पन्ने पर नही के बराबर जगह दी जाती है. हिन्दी के तीन और और अंग्रेजी के एक अखबार ने पहले पन्ने पर सिर्फ एक एक खबर को जगह दी.

विश्लेषण और फीचर के रूप में बहुत कम खबरें छपती हैं. दोनों रूपों को मिलाकर औसतन 6% खबरें रहती हैं.

पहले पन्ने पर संस्थान के पत्रकारों द्वारा भेजी गयी खबरों की संख्या ज्यादा रहती है. इसके बाद समाचार समितियों से आयी खबरों की संख्या रहती है.

अंग्रेजी अखबारों के पहले पन्ने पर उनके संवाददातओं द्वारा भेजी गयी खबरों की संख्या कुल खबरों का 76% थी वहीं हिन्दी अखबारों के पहले पन्ने के 70% ऐसी खबरें थी.

अंग्रेजी अखबार स्रोत के रूप में कई बार समाचार समितियों और अपने पत्रकारों दोनों का प्रयोग संयुक्त रूप से करते हैं. हिन्दी के तीन अखबारों ने सिर्फ एक एक बार ऐसा किया है. जबकि अंग्रेजी अखबारों के पहले पन्ने पर 14% खबरें ऐसी थी.

पहले पन्ने पर चित्रों का प्रयोग प्रमुखता से होता है. कई बार समाचार के रूप में केवल चित्र भी प्रकाशित किए जाते हैं. औसतन 8% चित्र ऐसे हैं जिनके साथ टेक्स्ट नहीं छापा गया है.

कुछ मामलों को छोड कर हिन्दी और अंग्रेजी अखबारों की प्राथमिकताएं एक जैसी हैं. मुख्य अंतर खबरों के स्रोत में है. अंतर्राष्ट्रीय मामले, राजनीति और सुरक्षा विषयों की खबरों की संख्या में दोनों भाषाई अखबारों में थोडा- बहुत अंतर है.




* स्रोत : सीएमएस मीडिया लैब



अध्ययन अवधि : अगस्त 2007 .







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# जिन अखबारों का अध्ययन किया गया :




* अंग्रेजी अखबार

हिन्दुस्तान टाइम्स

द टाइम्स ऑफ इंडिया

द हिन्दू

द इंडियन एक्सप्रेस




* हिन्दी अखबार

राष्ट्रीय सहारा

हिन्दुस्तान

दैनिक जागरण

नवभारत टाइम्स

Tuesday, May 22, 2007

अब मीडिया नाचेगी आपके इशारों पर

पिछले १६ वर्षों से सीएमएस मीडिया लैब मीडिया पर कड़ी निगाह रखे हुए है। समय-समय पर इस भटकती मीडिया को रास्ता भी दिखाता रहा है।

ऐसा देखा गया है कि आम जनता मीडिया के क्रियाकलापों से अच्छी तरह से वाकिफ़ नहीं है। चूँकि मीडिया प्रत्येक व्यक्ति के आचार-विचार-व्यवहार को प्रभावित करता है, इसलिए मीडिया सही रास्ते पर चले, यह अपरिहार्य आवश्यकता बन जाती है। यह ज़रूरी हो जाता है कि लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को कम से कम जनता ही चलाए। इसमें राजनैतिक हस्तक्षेप कम हों। क्या दिखाया जाना ज़रूरी है, क्या गैरज़रूरी, यह जनता ख़ुद तय करे।

इसलिए हम यह सार्थक पहल करने जा रहे हैं। हम आपके समक्ष प्रत्येक सप्ताह मीडिया कवरेज़ पर अपना विश्लेषण लेकर उपस्थित होने वाले हैं। हम अब केवल यह बताएँगें कि मीडिया क्या कर रहा है, दिशा निर्देश आप देंगे। हम मात्र यह बताएंगे कि क्रिकेट पर इतना टाइम दिया गया, आप तय करेंगे कि और कौन-कौन से खेलों पर कवरेज़ ज़रूरी है। हम सिर्फ़ यह बताएँगे कि फलाँ ख़बर पिछले हफ़्ते एक्सक्ल्यूसीव ख़बर थी, अब आपको सोचना है कि क्या उसे ही एक्सक्ल्यूसीव ख़बर होनी चाहिए थी।

इसके लिए हम एक प्रतियोगिता का भी आयोजन करने जा रहे हैं। प्रत्येक माह की शुरूआत में हम समसामयिक मीडिया आचरण पर आपका विश्लेषण आमंत्रित करेंगे जोकि मौज़ूदा मीडिया का समीक्षा होगा। हमारे साप्ताहिक विश्लेषण इस काम के लिए आपका कच्चा माल होंगे।

१) प्रत्येक प्रतिभागी हिन्दी या अंग्रेज़ी में से किसी भी भाषा में या दोनों भाषाओं में अपना विश्लेषण लिखकर cmsmedialab@gmail.com पर प्रेषित करेगा।

( विश्लेषण का माध्यम कोई भी विधा हो सकती है- कहानी, कविता, निबंध, रिपोर्ट, आलोचना इत्यादि।)

२) हिन्दी की प्रविष्टियों को यूनिकोड में टंकित होना आवश्यक है।

३) प्रविष्टियाँ मौलिक हों।

४) अधिकतम शब्द सीमा ४०० है।

५) प्रत्येक माह ४ सर्वश्रेष्ठ प्रविष्टियों के लेखकों को सीएमएम मीडिया लैब द्वारा पुरस्कृत किया जायेगा और उनकी प्रविष्टियों को महीने के अलग-अलग दिनों पर प्रकाशित किया जायेगा।

६) माह की सर्वश्रेष्ठ प्रविष्टि का पुरस्कार भी दिया जायेगा।

७) इस प्रतियोगिता का आयोजन जुलाई माह के प्रथम सप्ताह से आरम्भ होगा।

८) साल भर के पुरस्कृत विश्लेषणों को मीडिया के वरिष्ठ विश्लेषकों के समक्ष रखकर सीएमएस मीडिया विश्लेषक चुना जाएगा और पुरस्कार दिया जायेगा।

तो बस गड़ाएँ रहिए नज़रें मीडिया पर, क्योंकि देश को इसकी ज़रूरत है।